Bajrang Baan Lyrics In Hindi: हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार सभी देवी-देवताओं में राम भक्त और अंजनी पुत्र वीर बजरंगबली ऐसे देवता हैं जो अपने भक्तों को संकटों, संकटों से मुक्ति दिलाते हैं। भय और बीमारियाँ। हनुमान जी शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं और आज भी वे सशरीर इस धरती पर विचरण करते हैं। भगवान हनुमान चिरंजीवी हैं। भक्त भगवान हनुमान को प्रसन्न करने और अपनी सभी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए उनकी विधि-विधान से पूजा करते हैं।
सभी मनोकामनाओं की पूर्ति और भय से मुक्ति के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करने के साथ-साथ बजरंग बाण का भी पाठ किया जाता है। हनुमान चालीसा के अलावा बजरंग बाण का पाठ करना हनुमानजी की पूजा करने और उनका आशीर्वाद पाने का सबसे अचूक उपाय माना जाता है। बजरंग बाण का नियमित पाठ करने से कुंडली के ग्रह दोष समाप्त हो जाते हैं।
विवाह में आ रही रुकावटें दूर होती हैं। गंभीर बीमारियों की स्थिति में यह आराम या आराम दिलाता है। व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में अच्छी सफलता मिलने लगती है। समाज में मान-सम्मान बढ़ता है और वास्तु दोष दूर होते हैं। आइए पढ़ते हैं बजरंग बाण का संपूर्ण पाठ…
Bajrang Baan Lyrics In Hindi
दोहा
निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान।।
चौपाई
जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी।।
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै।।
जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि विस्तारा।।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका।।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा।।
बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा।।
अक्षय कुमार को मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा।।
लाह समान लंक जरि गई। जै जै धुनि सुर पुर में भई।।
अब विलंब केहि कारण स्वामी। कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी।।
जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होई दुख करहु निपाता।।
जै गिरधर जै जै सुख सागर। सुर समूह समरथ भट नागर।।
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले। वैरहिं मारू बज्र सम कीलै।।
गदा बज्र तै बैरिहीं मारौ। महाराज निज दास उबारों।।
सुनि हंकार हुंकार दै धावो। बज्र गदा हनि विलम्ब न लावो।।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीसा।।
सत्य होहु हरि सत्य पाय कै। राम दुत धरू मारू धाई कै।।
जै हनुमन्त अनन्त अगाधा। दुःख पावत जन केहि अपराधा।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत है दास तुम्हारा।।
वन उपवन जल-थल गृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।।
पाँय परौं कर जोरि मनावौं। अपने काज लागि गुण गावौं।।
जै अंजनी कुमार बलवन्ता। शंकर स्वयं वीर हनुमंता।।
बदन कराल दनुज कुल घालक। भूत पिशाच प्रेत उर शालक।।
भूत प्रेत पिशाच निशाचर। अग्नि बैताल वीर मारी मर।।
इन्हहिं मारू, तोंहि शमथ रामकी। राखु नाथ मर्याद नाम की।।
जनक सुता पति दास कहाओ। ताकी शपथ विलम्ब न लाओ।।
जय जय जय ध्वनि होत अकाशा। सुमिरत होत सुसह दुःख नाशा।।
उठु-उठु चल तोहि राम दुहाई। पाँय परौं कर जोरि मनाई।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनु हनुमंता।।
ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।।
अपने जन को कस न उबारौ। सुमिरत होत आनन्द हमारौ।।
ताते विनती करौं पुकारी। हरहु सकल दुःख विपति हमारी।।
ऐसौ बल प्रभाव प्रभु तोरा। कस न हरहु दुःख संकट मोरा।।
हे बजरंग, बाण सम धावौ। मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ।।
हे कपिराज काज कब ऐहौ। अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।।
जन की लाज जात ऐहि बारा। धावहु हे कपि पवन कुमारा।।
जयति जयति जै जै हनुमाना। जयति जयति गुण ज्ञान निधाना।।
जयति जयति जै जै कपिराई। जयति जयति जै जै सुखदाई।।
जयति जयति जै राम पियारे। जयति जयति जै सिया दुलारे।।
जयति जयति मुद मंगलदाता। जयति जयति त्रिभुवन विख्याता।।
ऐहि प्रकार गावत गुण शेषा। पावत पार नहीं लवलेषा।।
राम रूप सर्वत्र समाना। देखत रहत सदा हर्षाना।।
विधि शारदा सहित दिनराती। गावत कपि के गुन बहु भाँति।।
तुम सम नहीं जगत बलवाना। करि विचार देखउं विधि नाना।।
यह जिय जानि शरण तब आई। ताते विनय करौं चित लाई।।
सुनि कपि आरत वचन हमारे। मेटहु सकल दुःख भ्रम भारे।।
एहि प्रकार विनती कपि केरी। जो जन करै लहै सुख ढेरी।।
याके पढ़त वीर हनुमाना। धावत बाण तुल्य बनवाना।।
मेटत आए दुःख क्षण माहिं। दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं।।
पाठ करै बजरंग बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की।।
डीठ, मूठ, टोनादिक नासै। परकृत यंत्र मंत्र नहीं त्रासे।।
भैरवादि सुर करै मिताई। आयुस मानि करै सेवकाई।।
प्रण कर पाठ करें मन लाई। अल्प-मृत्यु ग्रह दोष नसाई।।
आवृत ग्यारह प्रतिदिन जापै। ताकी छाँह काल नहिं चापै।।
दै गूगुल की धूप हमेशा। करै पाठ तन मिटै कलेषा।।
यह बजरंग बाण जेहि मारे। ताहि कहौ फिर कौन उबारे।।
शत्रु समूह मिटै सब आपै। देखत ताहि सुरासुर काँपै।।
तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई। रहै सदा कपिराज सहाई।।
दोहा
प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान।।
तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान।।
सूचना
- बजरंग बाण का पाठ करने से भय, रोग, विपत्ति और कष्टों से मुक्ति मिलती है।
- मंगलवार और शनिवार को सूर्योदय से पहले बजरंग बाण का पाठ करें। सुबह जल्दी उठें, स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। शुद्ध अंतःकरण और पूर्ण श्रद्धा के साथ हनुमानजी की तस्वीर या मूर्ति के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो जाएं और बजरंग बाण का जाप करें। हनुमानजी को सूखा नारियल और गुड़ का भोग लगाएं और उनके चरणों में सरसों का तेल, उड़द की दाल और सिन्दूर चढ़ाएं।
- बजरंग बाण की रचना संत तुलसीदास ने 16वीं शताब्दी में अवधी बोली में की थी। उन्होंने लोकप्रिय भजन हनुमान चालीसा की भी रचना की।
- बजरंग बाण और हनुमान चालीसा का एक साथ पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
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