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हमारे भारत देश में प्राचीन काल से बहुत सी कुप्रथाएं चला आ रही है, जिनका आम जनमानस में खासा बुरा प्रभाव पड़ता है. इन कुप्रथाओ का खासा प्रभाव हमारे देश की लड़कियों पर पड़ता है. जिन पर इन कुप्रथाओ के कारण काफी अन्याय होता है. जिनमे कुछ लड़कियों को मृत्यु का सामना करना पड़ता है और कुछ लड़कियों की तो मृत्यु भी हो जाती है.
इस आर्टिकल में हम एक ऐसीं ही प्रथा के बारे में बात करने जा रहे है – जिसने काफी लड़कियों के बचपन या पढने, खाने, खेलने, कूदने के दिनों को निगल लियां. जी हाँ ! हम बात कर रहे है भारतीय कुप्रथा “बाल विवाह” की. बाल विवाह क्या है? इसके कारण, इसका हमारे समाज पर असर और इसे कैसे रोका सकता है? इस आर्टिकल के माध्यम से इन्ही बिन्दुओ पर चर्चा होगी.
What is Child Marrige? ( बाल विवाह क्या है? )
भारतीय कानून के अनुसार किसी भी बच्चे की एक निश्चित आयु के अन्दर यानि कम उम्र में बच्चो की शादी करना “बाल विवाह” कानून के अंतर्गत आता है. यह एक अंध-विश्वास एवं रुढ़िवादी प्रथा है. जिसको “बाल विवाह” का नाम दिया गया. ये बच्चो के मौलिक अधिकारों का हनन है जिसमे बच्चो पर असमय ही जिम्मेदारियों का बोझ लाद दिया जाता है.
बाल विवाह में बच्चो को ऐसे बंधन में बांध दिया जाता है जिसका उन्हें कोई ज्ञान नहीं होता और तब इतने सक्षम भी नहीं होते है कि अपनी जिम्मेदारियों का बोझ उठा सकें. उनको यह तक नहीं समझ आता कि यह उनके साथ क्या हो रहा है. इस कुप्रथा का शिकार अधिकतर बहुत ही कम उम्र की लड़कियां होती है. इसमें कम उम्र की लड़की व कम उम्र के लड़के के व्याह के साथ, कभी कभी ऐसा भी होता है कि बहुत ही कम उम्र की लड़की का व्याह बहुत ज्यादा उम्र के व्यक्ति के साथ कर दिया जाता है जिससे लड़की को शारीरिक व मानसिक दोनों रूपों से पीड़ा का सामना करना पड़ता है.
Child Marriage History ( बाल विवाह इतिहास )
एतिहासिक रूप में बाल विवाह एशिया के कुछ देशो में आम बात है, इस कुप्रथा का इतिहास कई सदियों एवं पीढ़ियों पुराना है. कुछ बुजुर्गो का कहना है कि इस कुप्रथा का आगाज वैदिक काल मे हुआ था. इसके बाद नयी पीढ़ियों ने भी इसको आगे बनाये रखा और यह प्रथा अब भी चली आ रही है.
बाल विवाह के सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक जैसे बहुत से कारण हैं. यहाँ हम आपके सामने बाल विवाह के कुछ प्रमुख कारणों के बारे में बताने जा रहे हैं.
लिंग के आधार पर समानता न होना एवं भेदभाव :- कई समुदायों में जहाँ बाल विवाह का प्रचलन हैं, वहां लड़कियों को लड़कों की तरह महत्व नहीं दिया जाता है. लड़कियों को उनके परिवार वालों द्वारा बोझ के रूप में देखा जाता था. उनका सोचना था कि अपनी बेटी का कम उम्र में शादी कर अपना बोझ उसके पति के ऊपर डाल देना चाहिए, क्योंकि उसको आगे की लाइफ पति के साथ ही बितानी है और वे अपनी आर्थिक कठिनाई को कम कर सके.
इसके अलावा लड़कियों को कैसे व्यवहार करना चाहिए, उसे कैसे कपड़े पहनने चाहिए, शादी करने के लिए किसको देखने की अनुमति होनी चाहिए, लड़कियों को इन सभी चीजों के लिए नियंत्रित करना भी बाल-विवाह के लक्षण हैं. लड़कियों के साथ भेदभाव कर उन पर घरेलू हिंसा, जबरदस्ती और साथ ही उन्हें खाने से वंचित कर उन्हें शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है. और यह सब अत्यधिक पिछड़े हों कारण सूचना, शिक्षा एवं स्वास्थ्य तक उनकी पहुँच न होने के कारण होता है.
परंपरा :- कुछ लोग इसे एक परंपरा के जैसे देखते हैं. कई जगहों पर यह सिर्फ इसलिए होता है, क्योकि लोगों का मानना है कि, यह पीढ़ीयों से चली आ रही कुप्रथा है. जब लड़कियों को मासिक धर्म शुरू होता हैं, तो वे समाज की नजर में महिला बन जाती है. और वे कच्ची उम्र में ही उनकी शादी कर उन्हें एक पत्नी और माँ का दर्जा दे देते हैं.
गरीबी :- बाल विवाह का मुख्यतः कारण गरीबी भी है. गरीब परिवार के लोगों में यह ज्यादा देखा जाता है कि वे अपनी बेटियों का विवाह जल्दी से जल्दी कर देते हैं. क्योकि वे आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं, इसलिए वे सोचते हैं कि लड़की की शादी जल्द से जल्द करने से उन्हें, उसकी खाना, कपडा, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं शादी में ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ेगा.
भारत गरीब परिवार के लोग लड़कियों के बजाय लड़कों को शिक्षित करने पर ज्यादा ध्यान देते हैं. यह सोच भी बाल विवाह का एक कारण है. गरीब परिवार के लोग अपना घर चलाने के लिए कर्जा लेते हैं, या वे किसी लड़ाई झगडे में पड़ जाते हैं, तो इस तरह के मामलों से निपटने के लिए वे लोग अपनी लड़कियों की शादी ऐसे घर में एवं कम उम्र में ही देते हैं. इसके अलावा यदि गरीब परिवार की बेटी युवा एवं कम पढ़ी लिखी हो, तो उन्हें दहेज के लिए कम पैसे देने होते हैं. इसलिए भी वे लड़कियों की शादी जल्दी कर देते हैं.
असुरक्षा :- कई माता – पिता अपनी बेटियों की शादी किसी युवा या उससे अधिक उम्र वाले लड़के से कर देते थे, क्योकि उन्हें लगता था कि यह उनके हित में है. वे लड़कियों को उत्पीढ़न और शारीरिक या यौन शोषण जैसे खतरे से उनकी सुरक्षा करने के लिए यह कदम उठाते थ.
अपर्याप्त कानून :- कई देश ऐसे हैं, जहाँ बाल विवाह के खिलाफ कानून तो हैं, लेकिन वह पूरी तरह से यह कानून लागू नहीं होता है. मुस्लिमों में शिया एवं हजारा कौमो में कुछ कानून हैं, जिसमें बाल विवाह भी शामिल है. इसी तरह कुछ समाज के लोग अपने अनुसार कानून का निर्माण कर भी बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं को बढ़ावा देते हैं.
ये सभीपॉइंट बाल विवाह के कुछ मुख्य कारण हैं जिसका परिणाम बहुत ही घातक तथा खतरनाक हो सकता है.
प्रभाव ( Effects )
यह एक ऐसी कुप्रथा हैं, जिसका प्रभाव नेगेटिव ही होता है. इसके दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं –
अधिकारों से वंचित :- बाल विवाह का सबसे बड़ा दुषप्रभाव यह होता है, कि इससे लड़कियों को जो अधिकार मिलने चाहिए, उन्हें उन अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है. उन्हें छोटी उम्र में ही खेलने कूदने के बजाय घर के कामों को सीखने के लिए मजबूर किया जाता है.
बचपन का छिनना :- यह कुप्रथा ऐसी हैं, जहाँ बच्चों से उनका बचपन छीन लिया जाता है. जब उनके खेलने कूदने के दिन होते हैं, तब उन्हें एक ऐसी जिम्मेदारी दे दी जाती हैं, जिसके बारे में उन्हें कुछ भी नहीं पता होता है. जहाँ उन बच्चो को खेल खिलौने एवं गुड्डे – गुड़ियों की शादी जैसे खेल खेलने चाहिए. वहां उन्हें ही गुड्डे गुड़ियाँ बना कर उनकी शादी कर दी जाती हैं और उन पर जिम्मेदारियों का बोझ डाल दिया जाता है. जिससे उनका मानसिक एवं इमोशनल विकास नहीं हो पाता है. एवं शारीरिक वृध्दि भी रुक जाती है.
निरक्षरता :- बाल विवाह के चलते लड़कियों को बिना पढाई लिखाई के ही रहना पड़ता हैं या उन्हें बीच में ही शिक्षा छोडनी पड़ती है. उन्हें घर के काम काज की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है. और लडकियाँ शिक्षित नहीं होने के कारण उन्हें स्वतंत्र एवं खुद को सशक्त बनाने के लिए उतने मौके प्राप्त नहीं होते हैं. इसका परिणाम यह होता है कि वे जीविका के लिए अपने परिवार पर निर्भर हो जाती हैं और खुद को शक्तिहीन बना लेती हैं, जिससे उनका आसानी से शोषण हो जाता है. इसके अलावा यदि वे शिक्षित नहीं रहती हैं, तो वे फाइनेंसियल कठिनाइयाँ में अपने परिवार की सहायता करने में भी कामयाब नहीं होती, साथ ही साथ वे अपने बच्चों को भी पढ़ाने लिखाने में कामयाब नहीं पाती हैं.
बीमारियाँ :- यदि छोटी उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती हैं, तो इससे वे एचआईवी जैसे खतरनाक यौन बीमारियों का शिकार भी हो सकती हैं. कम उम्र में विवाह होने से लड़कियाँ कम उम्र में ही गर्भवती हो सकती हैं जबकि उन्हें इसके बारे में इस उम्र में कोई जानकारी भी नहीं रहती है. इसके अलावा कम उम्र में लड़कियों के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाये जाने के कारण भी लड़कियों पर इसका बहुत बुरा असर पड़ता है. पीड़ित लडकियाँ अपने बचाव के लिए किसी से शर्म की वजह से कह भी नहीं पाती है. इससे उन्हें जानलेवा कई बीमारियाँ भी हो सकती हैं, यहाँ तक कि उनकी मृत्यु भी हो सकती है.
जल्दी माँ बनना :- बाल विवाह के बाद जल्दी माँ बन जाना बाल विवाह के सबसे प्रमुख प्रभावों में से एक हैं. माँ बनने के लिए मन व शरीर से स्वस्थ्य रहना बहुत जरुरी होता है, ऐसे में लड़कियों के जल्दी विवाह होने से वे जल्दी गर्भवती हो जाती है, जिससे गर्भवती माँ और बच्चे दोनों का स्वास्थ्य खतरे में पड़ सकता है. इससे उनके बच्चे कुपोषित व बीमार भी पैदा होते हैं जिससे उन्हें कई बीमारियाँ हो जाती हैं. शोध के अनुसार यह पता चला है कि 15 वर्ष से कम उम्र की लडकियाँ में 20 वर्ष से अधिक उम्र की लड़कियों की तुलना में डिलीवरी के दौरान मरने की संभावना 10 गुना अधिक होती है. ऐसे मामलों में बच्चे मृत्यु दर भी बहुत अधिक रहती है.
Bal Vivah Ka Chitra
यदि आप Kanya Vivah के चित्र डाउनलोड करना चाहते है तो आप नीचे या पोस्ट में दिख रहे, Bal vivah ka chitra images डाउनलोड कर सकते है.
बाल विवाह को कैसे रोका जा सकता है ? (How to Stop Child Marriage?)
लोगों को इसके लिए जागरूक करने एवं उन्हें ऐसी कुप्रथाओं को छोड़ने के लिए कई प्रयास किये गए हैं. और आज भी किये जा रहे हैं लेकिन कुछ प्रयासों और बिन्दुओ के बारे में जानकारी हम यहाँ प्रदर्शित कर रहे हैं –
लड़कियों को शिक्षित करना :- बालिकाओ को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए यह जरुरी हैं, कि उन्हें शिक्षित और प्रशिक्षित किया जाये. क्योंकि इससे वे समझ पाएंगी, कि उनकी जबरदस्ती की शादी उनके भविष्य को नेगेटिव रूप से कैसे प्रभावित करेगी? इसके साथ ही उन्हें इसके बारे में पूरी जानकारी भी मिल जाएगी, जिससे यदि उन पर शादी करने के लिए दबाव डाला जायेगा, तो उन्हें यह पता होगा, कि उन्हें इसके विरूद्ध लड़ने के लिए किससे संपर्क करना हैं?
लड़कियों का सशक्तिकरण :– इस कुप्रथा के खिलाफ लड़ने के लिए यह जरुरी है कि लड़कियाँ सशक्त और मजबूत बने, उनके अंदर आत्मविश्वास हो. उन्हें अपने साथ हो रहे अन्याय और बुराई के खिलाफ लड़ने के लिए खुद को और अधिक मजबूत करना होगा. क्योकि उन्हें अपना भविष्य तय करने का पूरा हक़ और अधिकार है. और साथ ही बालिकाओ को आत्मनिर्भर भी होना चाहिए ताकि कोई उन्हें अपने ऊपर बोझ न समझ सकें. इसके लिए जरुरी है, कि बालिकाएं शिक्षा ग्रहण करें और खुद को सशक्त बनाने की दिशा में काम करें.
गार्जन एवं समाज के लोगों का शिक्षित होना :- किसी भी लड़की का विवाह तय मुताबिक करने का काम लड़की के माता – पिता , गार्जन या समुदाय के लोगों द्वारा किया जाता है, कि वे किससे और कब विवाह कर रहे है. उन्हें इसके कानून के बारे में भी जानकारी नहीं होती और वे अपने लड़कियों का विवाह कमसिन उम्र में ही तय कर देते हैं. किन्तु यदि वे शिक्षित होंगी, तो उन्हें सभी चीजों के बारे में सही जानकारी होगी. उन्हें यह समझने में भी आसानी होगी, कि बाल विवाह के कई नेगेटिव रिजल्ट भी हो सकते हैं. अतः यदि गार्जन एवं समुदाय के लोग शिक्षित होंगे, तो वे अपने विचारों को बदलने, लड़कियों के हक़ व अधिकारों के लिए बोलने और लोगो को ऐसा करने के लिए उत्साहवर्धन करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं.
बाल विवाह खिलाफ बने कानून का समर्थन करना :- आज के समय में बाल विवाह के खिलाफ लड़ने के लिए कई कानून बनाये गये हैं. जैसे लड़के एवं लड़कियों के विवाह की उम्र सीमा तय कर दी गई हैं, इसके अलावा जो बाल विवाह का कानून तोड़ने वालों को सजा भी दी जाती हैं. इसके लिए समर्थन करना बहुत ही आवश्यक है. जितने ज्यादा लोग इसका समर्थन करेंगे, इस तरह की कुप्रथाओं को खत्म करने में उतनी ही आसानी होगी.
आर्थिक रूप से सहायता :- आज के समय में कई ऐसी योजनाएं बनाई जा रही हैं, जिससे गरीब परिवार वालों को उनकी बालिकाओ की देखरेख एवं शादी के लिए आर्थिक सहायता प्रदान की जा सकें, ताकि वे अपने लड़कियों को बोझ न समझें. आज बालिकाओ की शिक्षा से लेकर विवाह एवं उनके बच्चे होने तक के लिए सरकार द्वारा फाइनेंसियल हेल्प प्रदान की जा रही है. इससे बाल विवाह में पहले की तुलना में काफी गिरावट भी आई है.
बाल विवाह विरोधी संगठनों का समर्थन करना :- इस तरह की बुराई को समाप्त करने के लिए कई जगहों पर इसके विरोध में संगठन/समूह बनाये गये हैं, जो लोगों में इसके दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी/जागरूकता फैलाते हैं, इसका समर्थन भी किया जाना चाहियें. मीडिया, एवं अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से भी लोगों को इसके दुष्प्रभाव के बारे में जानकारी देकर उन्हें इससे बचने के लिए जाग्रत किया जा सकता है. टेलीविज़न पर भी बाल विवाह जैसी बुराइयों से लड़ने एवं उसे समाप्त करने के लिए कार्यक्रमों को दिखाया जाना चाहियें, इससे भी लोगों में काफी जागरूकता फैलेगी.
इस तरह सभी के प्रयासों के चलते बाल विवाह को रोकना बहुत आसान हो सकता है. आज के समय में बाल विवाह पहले की तुलना में काफी कम हैं लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है..
बाल विवाह के लिए बनाये गए कानून की जानकारी ( Basic Law Information for Child Marriage )
बाल-विवाह को रोकने के लिए सभी देशों में अलग-अलग कानून बनाये गये हैं. हम इस आर्टिकल में केवल भारत देश में बाल विवाह के लिए बने कानून के बारे में बात करेंगे, जो कि इस प्रकार है –
बाल-विवाह अधिनियम 1929
बाल विवाह केविरूद्ध सबसे पहले सन 1929 में कानून बनाया गया था. जिसे सन 1930 में अप्रैल महीने की 1 तारीख को पूरे देश में लागू किया गया था. इस कानून का उद्देश्य बालिकाओ पर इस कुप्रथा के कारण होने वाले दुष्प्रभावों को समाप्त करना था. इस कानून में निम्नलिखित नियम लागू किये गये थे –
- इस कानून के अंतर्गत विवाह के लिए पुरुष की आयु सीमा कम से कम 21 वर्ष एवं महिलाओं की आयु सीमा कम से कम 18 वर्ष तय की गई थी. इस उम्र से पहले की शादी को बाल विवाह समझा जाता था. और इसके लिए उन्हें सजा का भी प्रावधान था.
- 18 से 21 साल के बालिग पुरुष को नाबालिग लड़की से बाल विवाह करने पर उसे 15 दिन की सजा एवं 1000 रूपये का जुर्माना करना होता था.
- इसके अलावा 21 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों द्वारा नाबालिग बालिका के साथ विवाह करने पर व्यक्ति को, बाल विवाह को आयोजित करने वाले लोगों को, और लड़के एवं लड़की के अभिभावकों को 3 महीने की जेल की सजा और कुछ तय जुर्माना देना होता था.
- हालाँकि इस कानून के लागू होने हो जाने के बाद इसमें कई बार बदलाब भी किया गया था.
बाल-विवाह निषेध अधिनियम 2006
बाल-विवाह के लिए बनाए गए कानून की कमियों को दूर करने के लिए सरकार ने वर्ष 2006 में “बाल विवाह निषेध अधिनियम” बनाया था, जिसे एक नवंबर वर्ष 2007 को लागू कर दिया गया था. इस अधिनियम के अनुसार बाल विवाह को रोकना ही अपितु इसे पूरी तरह से खत्म करना था. पिछले अधिनियम में बाल विवाह के खिलाफ कार्यवाही करना थोडा मुश्किल था और इसमें टाइम भी लगता था, साथ ही साथ इसे पूर्ण रूप से लागू नहीं किया गया था. इसलिए वर्ष 2006 के अधिनियम के अनुसार इसमें उम्र की सीमा में कोई बदलाव नहीं किया गया, किन्तु इसमें बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कुछ बदलाव किये गये थे. जोकि इस प्रकार हैं –
- इस नए कानून के अंतर्गत बाल विवाह के लिए मजबूर की गयी नाबालिग लड़कियों एवं लडको को उनके वयस्क होने के पहले या उसके बाद 2 साल तक उनकी शादी तोड़ने का आप्शन दिया गया है.
- इसके साथ ही विवाह ख़त्म होने पर लड़की के ससुराल वालों को दहेज में मिले सभी कीमती सामान, पैसा और गिफ्ट वापस करना होता है, और लड़की को तब तक रहने के लिए एक सुरक्षित स्थान प्रदान किया जाता है, जब तक कि वह वयस्क नहीं हो जाती और उसकी दोबारा शादी नहीं हो जाती.
- इसके अलावा बाल-विवाह से पैदा हुए बच्चे को जायज माना जाता है, और अदालतें भी बच्चे के हित को ध्यान में रखते हुए उसके माता-पिता को उसकी कस्टडी देती है, ऐसा माना जाता है.
- इसके अलावा नए कानून में जेल की सजा को 3 महीने से बढाकर 2 साल कर दिया गया है और साथ ही कुछ निश्चित जुर्माना भी बढाया गया है.
- हालाँकि इस कानून के लागू होने के बाद मुस्लिम समुदाय के लोगो ने इसे मानने से इंकार कर दिया था. लेकिन इसके बाद भी यह कानून पूरे देश में लागू है.
शादी समाज का ऐसा भाग हैं जिसके बिना समाज कुछ नहीं है अर्थात शादी समाज की एक ऐसी परम्परा हैं जो कि सभी लड़के एवं लड़कियों की जिन्दगी में अहम भूमिका निभाती हैं. लेकिन शादी अगर सही उम्र में की जाये तो और अच्छा होता हैं, यदि उम्र से पहले कर दिया जाये, तो यह एक अभिश्राप भी बन सकती है. अतः बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाने एवं इस कुप्रथा को ख़त्म करने के प्रयासों के चलते आज के समय में इसमें काफी कमी भी आई हैं. आशा है कि आने वाले टाइम में यह कुप्रथा पूरी तरह से नष्ट हो जाएगी.
Conclusion- Child Marriage History
दोस्तों, उम्मीद है की Child Marriage History आर्टिकल काफी पसंद आया होगा और आपको बाल विवाह के बारे में पूरी जानकारी मिली होगी, यदि कोई बी पॉइंट आपके समझ में नही आया या गलत लगा हो तो कृपया कमेंट सेक्शन में जरुर लिखे, साथ ही हमारे इस आर्टिकल को अपने सभी दोस्तों में शेयर जरुर करें.
FAQs
Q: बाल विवाह क्या है Hindi?
Ans: समाज में किसी भी लड़की या लड़के की शादी अगर 18 वर्ष से कम में होती है तो इसे बाल विवाह माना जायेगा.
Q: बाल विवाह क्यों शुरू हुआ?
Ans: वैदिक काल में ही इसका आरम्भ हुआ, क्योंकि बाल योग में विवाह ज्यादा शुभ माना जाता था, और माँ-बाप का पौत्र प्राप्ति सपना भी इसका एक मुख्य कारण है.
Q: बाल विवाह कब से शुरू हुआ?
Ans: बाल विवाह वैदिक काल से चला आ रहा है.
Q: लड़कियों को शादी करना क्यों जरूरी है?
Ans: लड़कियों को शादी करना इसलिए जरुरी है क्योंकि इससे उनको जीवन भर साथ निभाने वाला एक साथी मिल जाता है और परिवार को आगे बढ़ाने के लिए एक लड़की से शादी करना जरुरी है.
Q: बाल विवाह को कैसे रोका जा सकता है?
Ans: बाल विवाह को रोकने के लिए गार्जन को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और शिक्षा को बढ़ावा देना होगा.
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